गंगा किनारे की यादें: कुसुम और उसकी अनकही कहानी

वह दिन मेरे लिए हमेशा के लिए यादगार बन गया

जैसे ही सूरज की पहली किरणें गंगा के पवित्र जल पर पड़ीं, मेरा मन शांति और सुकून से भर गया। सुबह की ठंडी हवा और गंगा की मीठी धारा ने मुझे अतीत में खींच लिया, जैसे मानो मेरी आत्मा किसी पुराने, भूले-बिसरे समय को फिर से जी रही हो। गंगा का किनारा और उसकी पवित्रता हमेशा से मेरे जीवन का हिस्सा रही है। हर एक सुबह, जब सूरज की रोशनी नदी पर पड़ती, तो वह न केवल पानी को, बल्कि मेरे भीतर के अंधेरों को भी सोने की तरह जगमगाने लगता था।

पुरानी यादें और घाट की ओर बढ़ते कदम

आज भी, उसी ठंडी सुबह में, एक बार फिर से मेरे कदम उसी पगडंडी की ओर बढ़ गए, जो वर्षों पहले मुझे इस घाट की ओर खींच लाती थी। लेकिन आज कुछ अलग था। गंगा का वह सुनहरा पानी, जो हर रोज़ मेरे सामने बहता था, आज मुझे पुराने दिनों की ओर इशारा कर रहा था। नदी के उस मोड़ पर तीन पुराने ईंट के घाट खड़े थे, और हर एक घाट मेरे जीवन की किसी कहानी का गवाह था। मैंने उन दिनों को याद किया, जब मैं जवान था, और हर सुबह सूर्योदय से पहले घाट पर आता था।

कुसुम: गाँव की पहेली

आसमान में एक पक्षी पंख फैलाकर उड़ रहा था, जैसे एक मुक्त आत्मा। उसी तरह, मेरी स्मृतियाँ भी आज स्वतंत्र हो गईं, और वे मुझे कुसुम की ओर खींचने लगीं। कुसुम, जिसे मैंने कभी नहीं भुलाया था। एक समय था, जब वह इस घाट पर आती थी, उसकी हँसी गंगा की लहरों में गूंजती थी। उसकी आँखों में वह चंचलता थी, जो हर किसी को उसकी ओर आकर्षित करती थी, लेकिन वह हमेशा शांत और गंभीर बनी रहती थी। उसने कभी किसी से अधिक बात नहीं की, लेकिन उसकी मौजूदगी ही बहुत कुछ कह जाती थी।

कुसुम का नाम गाँव की हर लड़की के बीच एक पहेली सा था। कुछ कहते थे कि वह बहुत खुश है, कुछ कहते थे कि वह बहुत दुखी। लेकिन उसकी आँखों में एक गहरी उदासी छिपी थी, जिसे वह दुनिया से छुपाने की कोशिश करती थी। उसकी माँ उसे गंगा के किनारे ले आती थी, और वह घंटों तक पानी के पास बैठी रहती थी। वह शायद पानी से कोई गहरा रिश्ता महसूस करती थी, जैसे कि उसकी आत्मा उस नदी में बस गई हो।

संत का आगमन और कुसुम की आत्मा की खोज

वर्षों बीत गए, और कुसुम मेरी यादों से धीरे-धीरे दूर होती गई। फिर एक दिन, जब मैं घाट पर था, एक अचानक अनुभूति हुई। एक परछाई मेरी ओर बढ़ी, और मैंने देखा कि वही कुसुम, जिसे मैंने कभी नहीं भुलाया था, मेरे सामने खड़ी थी। लेकिन अब वह वही लड़की नहीं थी, जिसे मैंने बचपन में देखा था। उसकी आँखों में वह चमक अब नहीं थी। वह एक औरत बन चुकी थी, जिसने जीवन के संघर्षों का सामना किया था। उसकी शादी हो चुकी थी, लेकिन वह अकेली थी। उसका पति विदेश में काम करता था, और वह उसके पास कभी नहीं जा सकी।

गंगा किनारे की यादें

कुसुम ने गंगा के पास आकर अपनी पुरानी आदत के अनुसार पानी के पास बैठकर एक गहरी सांस ली। उसकी आँखों में एक उदासी थी, जो नदी की लहरों में भी झलक रही थी। वह चुपचाप बैठी रही, और मैं उसे देखते हुए सोचता रहा कि उसकी जिंदगी में कितनी तकलीफें आई होंगी। वह अब वह चंचल लड़की नहीं थी, जिसे मैंने याद किया था। वह अब एक स्त्री थी, जिसने जीवन की कठिनाइयों को अपने सीने में समेट रखा था।

कुछ समय बीता, और फिर गाँव में एक संत का आगमन हुआ। वह एक युवा साधु था, जिसने गाँव के शिव मंदिर में शरण ली थी। उसका नाम तो मुझे नहीं पता, लेकिन लोग उसे बहुत मानते थे। वह भगवद गीता और अन्य धर्मग्रंथों की व्याख्या करता था, और लोग उसकी बातें सुनने के लिए दूर-दूर से आते थे। धीरे-धीरे, गाँव की लड़कियाँ भी उसकी ओर आकर्षित होने लगीं।

कुसुम का जीवन संघर्ष और अंत

कुसुम भी उन दिनों उस साधु की ओर खिंची चली आई। वह हर रोज़ मंदिर के पास जाकर उसकी बातें सुनती थी, लेकिन कभी उसके करीब जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। साधु की बातें जीवन के गूढ़ रहस्यों को उजागर करती थीं, लेकिन कुसुम के लिए वे शायद एक दिलासा थीं, जो उसकी पीड़ा को कुछ समय के लिए कम कर देती थीं।

एक दिन, गाँव में एक बड़ा आयोजन हुआ। गंगा में स्नान करने के लिए बहुत से लोग आए, और साधु ने वहां भगवद गीता का पाठ किया। उसकी बातें सुनकर लोगों के मन में एक अजीब सा सुकून आया। लेकिन कुसुम के चेहरे पर आज भी वही उदासी थी। जैसे ही उसने साधु की बातें सुनीं, उसकी आँखों से आंसू बहने लगे। वह शायद जीवन के उन सवालों का जवाब ढूंढ रही थी, जिनका उत्तर उसे कभी नहीं मिला था।

उस दिन के बाद, कुसुम ने साधु से मिलकर उसे अपने जीवन की सारी बातें बताईं। साधु ने उसे धैर्य रखने की सलाह दी, और कहा कि समय हर घाव को भर देता है। लेकिन कुसुम के लिए वह समय कभी नहीं आया। कुछ समय बाद, गाँव में खबर आई कि कुसुम का पति वापस नहीं आएगा। उसे विदेश में कोई और मिल गया था। यह खबर सुनकर कुसुम का दिल टूट गया। उसने गंगा के पास आकर अपनी सारी तकलीफें उस पवित्र जल में बहा दीं।

यादें और गंगा की लहरें

उसकी यह कहानी अब शायद गाँव की लड़कियों के बीच भी भूल चुकी थी। लेकिन मेरे लिए वह यादें अब भी ताजा थीं। आज भी जब मैं गंगा के उस घाट पर बैठता हूँ, तो मुझे लगता है कि कुसुम की वह उदास आँखें अब भी मेरे सामने हैं। उसकी कहानियाँ, उसकी तकलीफें, उसकी खुशियाँ, सब कुछ इस गंगा के पानी में बह रही हैं।

कुसुम की कहानी ने मुझे यह सिखाया कि जीवन में हर किसी के पास अपनी-अपनी मुश्किलें होती हैं, और उन्हें सहने का अपना-अपना तरीका होता है। कभी-कभी हम अपनी तकलीफों से भागने की कोशिश करते हैं, लेकिन अंत में हमें उनका सामना करना ही पड़ता है। गंगा की तरह, जीवन भी बहता रहता है, और हमें उसके साथ बहने का हुनर सीखना होता है।

समाप्ति:

कुसुम चली गई, लेकिन उसकी यादें अब भी मेरे साथ हैं। गंगा की लहरों के साथ उसकी कहानी भी मेरे दिल में बसी हुई है। और जब भी कोई नया दिन आता है, मैं उसकी यादों को फिर से जीने लगता हूँ। यदि घटनाएँ पत्थर पर लिखी होतीं, तो मेरी छत पर अतीत के कितने शब्द पढ़े जा सकते थे। पुरानी कहानी सुननी हो, तो मेरी सीढ़ी पर आ जाओ; ध्यान से पानी सुनते रहो, बहुत से भूले-बिसरे शब्द तुम्हें सुनाई देंगे।

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